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बागे-जन्नत पुस्तक | Bagh E Jannat Hindi Book PDF Download
मगर आखिरत की नैमतें हमेशा-हमेशा के लिए हैं, जो कभी ख़त्म न होंगी और दुनिया की नैमतें ख़त्म होने वाली भी हैं और इनमें कोई न कोई तकलीफ़ भी होती है। देखो, खाना एक नैमत है मगर इसमें कितनी तकलीफ़ और मेहनत हैं कि ज़मीन कमाओ, बीज डालो, फिर अनाज निकालो, फिर आटा पिसवाओ, फिर गूंधो, फिर पकाओ, फिर खाओ। यह तो खाने से पहले की तकलीफें हैं और खाना खाने में और इसके बाद भी तकलीफ़े हैं। मसलन कभी मिर्च और नमक ज्यादा हो गया, कभी खाना कच्चा रह गया कभी खाने के बाद पेट में बोझ हो गया, कभी क़ब्ज़ हो गया, कभी हैजा हो गया या दस्त आने लगे या क़ै हो गयी या कोई मर्ज हो गया।
कहीं हाजमे के लिए चूरन खाया जाता है। देख लो दुनिया की एक नैमत खाने में कितनी तकलीफें उठानी पड़ी। इसी तरह दुनिया की हर नैमत के साथ तकलीफ़ भी लगी होती है। और आखिरत की नैमते जब मिलेंगी तो कभी खत्म न होंगी और न उनमें कोई तकलीफ़ और मेहनत उठानी पड़ेगी। जन्नत में खुशी ही खुशी रहेगी। वहाँ जो चाहोगे वही होगा। देखो जन्नत में कोई फल खाने को तोड़ा तो उसमे एक खूबसूरत हूर निकल आयेगी। वह कहेगी "अस्सलामु अलैकुम" । फल अलग खाया और मुफ़्त मे एक हूर भी हाथ आ गयी। ग़रज़ जन्नत में अजीब अजीव हालत होगी और जन्नत में जितना दिल चाहे खाओ और हमेशा खाते रहो तब भी मज़ा आयेगा
बस इससे पूरा नफ़ा हासिल करो और अपनी हालत को इस्लाम के हुक्म के मुवाफ़िक़ दुरूस्त करो, अक़ीदों और अमलों को सँवारो। अगर तुम्हारे अन्दर इस्लाम के पूरे औसाफ़ हों तो इसके अनवार व बरकात तुम्हारे चेहरों से जाहिर होंगे। यहाँ तक कि ग़ैर मुस्लिम भी तुम्हारी अच्छी आदतें और अच्छे अमल देखकर खुद-ब-खुद इस्लाम क़बूल करेंगे क्योंकि इस्लाम सच्चा दीन है, अल्लाहतआला को पसंद है। इसलिए इसमें मकनातीस की तरह असर है।
पुस्तक | बागे-जन्नत पीडीएफ / Bagh E Jannat PDF |
लेखक | सैय्यद इनायत अली शाह साहब |
प्रकाशक | अज्ञात |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 337 |
आकार | 6.7 MB |
फाइल | |
Status | OK |