अल्लाह को अपना बना लो पीडीएफ | Allah Ko Apna Banalo Hindi Book PDF



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अल्लाह को अपना बना लो पुस्तक | Allah Ko Apna Banalo Hindi Book PDF Download

कभी आप चींटी उठा कर देखो उसके तो पांव ही नज़र नहीं आते वो लकीर क्या बनाएगी? वो तो नर्म मिट्टी पर तो लकीर मुश्किल से बने तो पत्थर पर लकीर कैसे बनेगी? अगर बड़ी बड़ी खुर्दबीन लगाई जाएं तो बनती नज़र आएगी, अल्लाह अर्श पर हो के कह रहा है, कि मैं उसे देख रहा हूं। रात का अंधेरा, पहाड़ का अंधेरा, घास का अंधेरा, जंगल का अंधेरा, चींटी का अपना अंधेरा, और इस की हकीर काली टांगों का अंधेरा भी, मुझसे ये लकीर नहीं छुपा सकता, वो ऐसा बसीर है।

 सबसे बड़ी आफत और मुसीबत है कि इन्सान ये दुनिया छोड़ कर चला। जाता है, कितने अरमानों से आप लोगों ने घर बनाए हुए हैं। हत्ताकि चिड़या भी घोंसला शौक से बनाती है, एक बया, एक छोटा सा वो भी बड़े ज़ौक व शौक से तिन्के इकट्ठे करता हैं और अपने लिए घोंसला बनाता है कि ये हर जानदार की फितरत है कि वो रहने के लिए कोई न कोई घर बनाता है, अरमानों से इन्सान घर बनाता है। और फिर से छोड़ कर लोगों के कंधों पर सवार हो कर अंधेरी कोठरीमें जाकर सो जाता है।

मेरे भाइयो! हम ये कह रहे हैं कि अपने अल्लाह से तअल्लुक जोड़ लो, तब्लीग़ कोई जमाअत नहीं, कोई तहरीक नहीं, ये वही है जो मैं अर्ज़ कर रहा हूं। जहां आप हैं वही अल्लाह से तअल्लुक जोड़ें ये कोई हुकूमत नहीं कि तअल्लुक बनाना मुश्किल हो, हज़ार बरस के गुनाहों को एक आंसू धो देता है, तौबा करें, अपने अल्लाह को मना लें उसके सामने झुक जाएं हुकूमत से आदमी गुमराह नहीं होता है, दिलसे आदमी गुमराह होता है फक्र से कोई गुमराह नहीं होता दिल से आदमी गुमराह होता है।





पुस्तकअल्लाह को अपना बना लो पीडीएफ / Allah Ko Apna Banalo PDF
लेखकहज़रत मौलाना तारिक़ जमील साहब
प्रकाशकफरीद बुक डिपो प्राइवेट लिमिटेड
भाषाहिन्दी
कुल पृष्ठ241
आकार4.5 MB
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StatusOK

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