आत्मिक उत्कर्ष पुस्तक | Aatmik Utkarsh Book PDF Download
मंसूर ने हक कहा, दार पर खींचा गया। शम्श तवरेज ने सार-वस्तु का परदा उठा दिया, जान से मारा गया। सरमद ने उनमत्त अवस्था में आकर असली भेट की गवाही दी और शहीद हुआ। परन्तु ऐ मनुष्य! इस संसार में तेरी जात सब से निराली है। तू ही पैदा करने वाला, मारने वाला और स्थिर रखने वाला है। तू अपनी आत्मिक उत्कर्ष की निराली शान को नहीं देखता क्योकि तुम्हारे ऊपर भ्रम का परदा पड़ा हुआ है। तुझको स्वयं अपने निज रूप का ज्ञान नहीं है।
तुम्हे माया और अविद्या ने घेर रखा है, जिसका मुख्य कारण तू स्वयं ही है। स्वयं ही स्वतंत्र हुये और स्वयं ही बन्धन में पड़े। संसार में क्या बात है जो तू नहीं करता अथवा नहीं कर सकता, केवल समझने और समझ लेने की देर है। फिर प्रकृति की संपूर्ण शक्तियां तेरी ओर आकर्षति हो जायेंगी और तेरी बन्दगी का दम भरने लगेंगी। ऐ मूर्ख! संभव है अभी तू मेरी बात को न माने परन्तु तूने ही अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा बड़ी बड़ी दिव्य शक्तियों को खींच कर आत्मिक उत्कर्ष को पाया था।
राम और कृष्ण का उत्पन्न करने वाला तू स्वयं हैं और जिस को कलकी अवतार कहा जाता है उसको तू स्वयं ही आवश्यकतानुसार समय पर उत्पन्न कर लेगा। आज तुझको मेरी बात की समझ नहीं आती परन्तु समय आ रहा है जब तुझको मानुषिक विकास तथा चमत्कार का साक्षात्कार प्राप्त होगा और तू समझ जायेगा कि यह बातें असत्य हैं अथवा सत्य और यथार्थ हैं। मनुष्य की श्रेष्ठता का वर्णन किससे हो सकता है! देवता और फरिश्ते असमर्थ हैं। सरस्वती और ब्रह्मा तक कदाचित साहस न कर सकें। इसकी पहुँच बहुत दूर तक है।
पुस्तक | आत्मिक उत्कर्ष पीडीएफ / Aatmik Utkarsh PDF
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लेखक | महर्षि शिवब्रत लाला वर्मा |
प्रकाशक | शिव साहित्य प्रकाशन मंडल |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 128 |
आकार | 24 MB |
फाइल | PDF |
Status | OK |
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