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योग और अध्यात्म हिंदी पुस्तक से कुछ अंश :
योग और अध्यात्म का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती। इस प्रकार दोनों में अविनाभाव सम्बन्ध को देखते हुए और वर्तमान भौतिक युग में इसकी प्रासंगिकता को देखते हुए इस पर कुछ लिखने का भाव मन में जागृत हुआ ।।
अध्यात्म के क्षेत्र में जिन महापुरुषों ने आत्मोन्नति की है वे वस्तुतः महान् योगी ही थे। ऐसे महान् आत्माओं में महर्षि पतंजलि, आद्यशंकराचार्य, गुरु गोरखनाथ, रामकृष्णपरमहंस, महर्षि रमण, स्वामी विशुद्धानन्द, गोपीनाथ कविराज आदि का नाम उल्लेखनीय है ।।
इन्द्रियों के निग्रह के द्वारा आत्मा व परमात्मा में एकत्व की अनुभूति ही योग है और आत्मविषयिणी बुद्धि होना और आत्मस्थ होना ही अध्यात्म कहा जाता है ।।
इस प्रकार योग और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक हैं। बिना नियम के पालन के योग में गति नहीं हो सकती और जिसने यम, नियम आदि को सिद्ध कर लिया है, उसे अध्यात्म के क्षेत्र में ऊँचाइयों पर पहुँचने में विलम्ब नहीं हो सकता ।।
ऐसा नहीं है कि इस पुस्तक को पढ़ने से अज्ञानी, अनात्मवादी और मूढ़ व्यक्ति ज्ञानी हो जाएँगे। परन्तु आत्मा को ही शाश्वत सत्य मानने तथा आत्मा व परमात्मा के एकत्व की अनुभूति करने के लिए उसके बारे में श्रुतियाँ क्या कहती हैं उसको जानना आवश्यक है ।।
क्योंकि सत्य व परमसत्ता के अन्वेषण व उसको जानने की प्रवृत्ति भारतीय मनीषा में अनादि काल से रही है। उन्हीं भारतीय प्राज्ञपुरुषों के जीवन दर्शन, जीवनानुभूति पर आधारित प्रस्तुत कृति है ।।
क्या पता पुस्तक का कोई अंश किसी पाठक के जीवन में संसार की नश्वरता और आत्मा की अमरता के बारे में चिन्तन करने को विवश कर दे उसके जीवन में कुछ स्वल्प आनन्द के बीज अंकुरित हो जाएँ ।।
पुस्तक का उद्देश्य व्यक्ति को अकर्मण्य बनाना नहीं है, अपितु श्रेष्ठ कर्म करते हुए फलाकांक्षी न होने, संसार में रहते हुए असंग रहने और आत्मवत् सर्वभूतेषु की भावना में विश्वास रखने की दिशा में चिन्तन करने को प्रेरित करना है ।।
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस योग विद्या को मैने सूर्य को दिया था, फिर सूर्य ने इसे मनु को व मनु ने इक्ष्वाकु को यह ज्ञान दिया था तो उससे भी यह प्रमाणित होता है कि योग के आदि उपदेष्टा स्वयं भगवान् ही है ।।
इस प्रकार उत्पत्ति की दृष्टि से योगशास्त्र की प्राचीनता सिद्ध होती है। मूल रूप से योग विद्या प्राचीन होते हुए भी इसको सर्वप्रथम द्वितीय शताब्दी में शास्त्रबद्ध करने वाले व सूत्र रूप में निबद्ध करने वाले प्रथम आचार्य महर्षि पतञ्जलि ही थे ।।
हमारे देश की यह विशेषता है कि यहाँ ज्ञानी उसी को कहते हैं जो आत्मज्ञानी है। व्यवहार जगत् के विस्तृत अध्ययन किए हुए व्यक्ति को लोग ज्ञानी समझ बैठते हैं किन्तु वस्तुतः अध्यात्म जगत् की दृष्टि से ऐसा व्यक्ति विद्वान् तो है परन्तु ज्ञानी नहीं है ।।
वह ज्ञानी तभी होगा जब वह आत्मज्ञानी होगा। हमारे अहन्ता में आत्म-ज्ञान की झलक तो मिलती है किन्तु वह आत्मज्ञान नहीं है क्योंकि उसमें अहम् के साथ अन्य वस्तुएँ जुड़ी हुई हैं ।।
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Yog Aur Adhyatma PDF Book Details :
पुस्तक | योग और अध्यात्म - Yog Aur Adhyatma |
लेखक | डॉ. सुरेंद्र कुमार पांडेय |
प्रकाशक | मीरा पब्लिकेशंस, इलाहाबाद |
मुद्रक | सुलेख मुद्रणालय, इलाहाबाद |
प्रकाशन तिथि | 2013 |
पृष्ठ | 294 |
Pdf आकार | 48 MB |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | भक्ती धर्म, योग |
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