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सूर्य सिद्धांत हिंदी पुस्तक से कुछ अंश :
ज्योतिषशास्त्र के विस्तृत वाङ्मय में मेरु की भाँति विद्यमान सूर्य सिद्धान्त जहाँ अपनी प्राचीनता एवं प्रामाणिकता के लिए प्रसिद्ध है वहीं यह अपनी सरलता के कारण भी अत्यधिक लोकप्रिय है ।।
सूर्यसिद्धान्त के उपदेष्टा स्वयं सूर्य देव हैं, अतः इस ग्रन्थ का काल निर्धारण विवादास्पद रहा है। सौरसिद्धान्त का उपदेश समय-समय पर ऋषियों को होता रहा है जिसमें अन्तिम उपदेश सूर्य के अंशावतार ने 'मय' को दिया था ।।
इस प्रसंग से सूर्यसिद्धान्त की एक विस्तृत परम्परा सिद्ध होती है। सूर्यसिद्धान्त में जो काल भेद का उल्लेख है वह इस सिद्धान्त की प्रामाणिकता एवं जागरूकता को संकेतित करता है ।।
सूर्यसिद्धान्त के ऐतिहासिक पक्ष पर दृष्टि डालने वाले विद्वानों ने वर्तमान सूर्यसिद्धान्त को मयोपदिष्ट सूर्यसिद्धान्त से भिन्न माना है। कुछ विद्वानों ने पञ्चसिद्धान्तिका में वर्णित सूर्यसिद्धान्त को मूल सिद्धान्त कहा है ।।
इस सन्दर्भ में श्री बालकृष्ण दीक्षित ने अपने ग्रन्थ भारतीय ज्यौतिष में लिखा है- वर्तमान सूर्यसिद्धान्त के भगणादि मान और वर्षमान पञ्चसिद्धान्तिकोक्त सूर्यसिद्धान्त के भगणादिमान और वर्षमान से नहीं मिलते हैं ।।
पंचसिद्धान्तिकोक्त सूर्यसिद्धान्त और वर्तमान में प्रचलित सूर्यसिद्धान्त वर्षमान तथा भगणादि मूल तत्त्वों के विषय में एक दूसरे से भिन्न प्रतीत होते हैं। इनमें दूसरा पहले की अपेक्षा नया है। वराहमिहिर ने पञ्चसिद्धान्तिका में केवल पहले का ही संग्रह किया है ।।
आरम्भ काल में पौलिश सिद्धान्त अधिक शुद्ध तथा उसी के आसन रोमक सिद्धान्त था इन दोनों की अपेक्षा सूर्यसिद्धान्त अधिक स्पष्ट था ।।
अन्य दो वसिष्ठ और पैतामह सिद्धान्तों में बहुत अन्तर पड़ गया है। ये सिद्धान्तपञ्चक अत्यन्त प्राचीन है। इनके रचनाकाल का वास्तविक ज्ञान पुष्ट प्रमाण के अभाव में अभी तक नहीं हो सका है ।।
वर्तमान समय में भी सिद्धान्तपञ्चक चर्चा में हैं किन्तु पाँचों सिद्धान्त पञ्चसिद्धान्तिका के पाँच सिद्धान्तों से भिन्न हैं अतः इन्हें वर्तमान सिद्धान्त पञ्चक कहा जाता हैं ।।
ये पाँचों सिद्धान्त अपौरुषेय माने जाते हैं। आचार्य शंकरबालकृष्ण दीक्षित ने स्पष्ट लिखा है कि पञ्चसिद्धान्तिकोक्त पाँच सिद्धान्तों में से कुछ और विष्णुधर्मोत्तर सिद्धान्तों को छोड़कर अन्य कोई सिद्धान्त अपौरुषेय नहीं माना जाता है ।।
ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर उपलब्ध एवं मान्य सभी सिद्धान्तों में आर्य सिद्धान्त सर्वाधिक प्राचीन माना जाता है। उक्त पाँचों सिद्धान्त आर्य सिद्धान्त से प्राचीन होंगे ऐसा मेरा विचार है ।।
पाश्चात्य विद्वानों ने भी उक्त सिद्धान्तों के रचना काल के सन्दर्भ में पर्याप्त विचार किया है । ह्रिटने तथा वेंटली ने ग्रहगणना को आधार मानकर वर्तमान सूर्यसिद्धान्त का जो समय निश्चित किया है उसमें महान् अन्तर है ।।
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Surya Siddhanta PDF Book Details :
पुस्तक | सूर्य सिद्धांत - Surya Siddhanta |
लेखक | प्रो. रामचंद्र पांडेय |
प्रकाशक | चौखंबा सुरभारती प्रकाशन |
मुद्रक | ए. के. लियोग्राफर, दिल्ली |
प्रकाशन तिथि | 1999 |
पृष्ठ | 394 |
Pdf आकार | 186 MB |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | एस्ट्रोलॉजी, धर्मिक |
फाईल |
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