Details about परलोक विज्ञान Parlok Vigyan Hindi Book Pdf
परलोक विज्ञान पुस्तक के रचयिता है : अरुण कुमार शर्मा | इस पुस्तक में कुल 408 पृष्ठ हैं | परलोक विज्ञान पुस्तक की पीडीएफ फाइल का साइज : 22 MB | परलोक विज्ञान पुस्तक के प्रकाशक : चौखंबा सुरभारती प्रकाशन, वाराणसी | परलोक विज्ञान पुस्तक की भाषा है : हिन्दी | इस पुस्तक के प्रथम संस्करण का प्रकाशन तिथि : 2006 | इस पुस्तक की पीडीएफ क्वालिटी है : बहुत अच्छी | परलोक विज्ञान हिंदी पुस्तक का डाउनलोड लिंक इस पेज पर नीचे दिया गया है, जहां से आप केवल एक क्लिक से इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड कर सकते हैं। परलोक विज्ञान बुक की श्रेणी है : भक्ति धर्म
Parlok Vigyan book is written or composed by : Arun Kumar Sharma | This book has total 408 pages | Size of the Pdf file of the Parlok Vigyan book : 22 MB | Parlok Vigyan book is published by : Chaukhamba Surbharati Prakashan, Varanasi | Language of the book Parlok Vigyan is : Hindi | First edition of this book was published in : 2006 | Pdf quality of this book is : very good | Download link of Parlok Vigyan Hindi Book is provided below on this page, from where you can download the pdf file of this book by just a single click. Category of the Parlok Vigyan Hindi book is : Bhakti Dharma
Book Title : Parlok Vigyan / परलोक विज्ञान
Author Name : Arun Kumar Sharma
Publisher : Chaukhamba Surbharati Prakashan, Varanasi
Tags : Parlok Vigyan Hindi book Pdf
Category : Bhakti Dharma
Number of pages : 408
File Size : 22 MB
Language : Hindi
First edition : 2006
File type : Pdf
Pdf Quality : Good
Copyright : (CC0 1.0) Public Domain
Material type : Book
Book type : ebook
Download link : available
Source : Public domain
Parlok Vigyan Book Summary :
अब तक की समीक्षा से जो तथ्य स्पष्ट हुआ है उसके अनुसार भारतीय संस्कृति वैदिक तथा तांत्रिक साधना प्रधान है। आत्मा को निरन्तर प्रबुद्ध करते हुए पुरुषार्थ की सिद्धि तथा भारतीय संस्कृति के जितने भी आध्यात्मिक लक्ष्य हैं, वे सब योग और तंत्र के विभिन्न साधना व उपासना मार्गों द्वारा साकार होती हैं।
यह कहना अप्रासंगिक न होगा कि भारतीय संस्कृति की दो धारा होने के फलस्वरूप शुरू से ही इस देश में परलोक विज्ञान, साधना और उपासना के स्रोत समझे जाते रहे हैं। आगम और निगम दोनों का आधार मात्र योग है। बिना योग के चाहे वह वैदिक साधना उपासना हो या तांत्रिक साधना उपासना हो, व्यर्थ है।
सच बात तो यह है कि तंत्र और तांत्रिक साधना उपासना आदि के संबंध में जो अनेक भ्रामक एवं कुत्सित धारणाएँ समाज में फैली हुयी हैं उनमें तांत्रिक परम्परा का दोष नहीं वरन् दोष है उन तांत्रिकों का जो बिना योग के ही तंत्र साधक बन पापाचार व भ्रष्टाचार के उन्नायक बन गए।
ऐसी अवस्था में 'परलोक विज्ञान' के महत्व को समझकर योग और तंत्र के वास्तविक स्वरूप को जहाँ तक सम्भव हो सके वैज्ञानिक दृष्टि से प्रस्तुत करना अति आवश्यक है। तभी जन मानस में सनातन से चली आ रही योग तांत्रिक साधना परम्परा के प्रति श्रद्धा और विश्वास उत्पन्न होगा और साथ ही समाज का कल्याण भी होगा।