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नीतिशतकम PDF Book Hindi Free Download
नीतिशतकम् हिंदी ग्रंथ से कुछ अंश :
संस्कृत साहित्य के प्राचीन यशस्वी कवियों की तरह ही भर्तृहरि की कविता जितनी लोक प्रसिद्ध है, उनका व्यक्तित्व उतना ही अज्ञात हैं। इतिहास के उनके विषय में मौन होने से हम आज उनकी स्थिति तथा जीवन चरित्र से अपरिचित हैं ।।
कर्णपरम्परा के आधार पर कुछ लोग उन्हें राजा के रूपमें देखते हैं, किन्तु उनकी रचना से राजसी भाव नहीं झलकता । अतः दन्तकथा के मूल में सत्यांश प्रतीत नहीं होता ।।
पाश्चात्य शोधक विद्वान् चीनी यात्री इत्सिंग के कथन में विश्वास करते हुए उन्हें बौद्ध धर्मावलम्बी मानते हैं, जो गृहस्थ और सन्यासी जीवन के मध्य में अनेक चक्कर लगाते रहे हैं ।।
कहा जाता है कि एक बार एक सिद्ध साधु ने राजा का एक फल प्रसाद के रूप में दिया था। राजा ने उस फल को सदा हृदय में रहनेवाली अपनी रानी को बड़ी प्रसन्नता से खाने लिए दिया था ।।
किन्तु रानी ने उस फल को सदा विचारों में रहनेवाले अपने उपपति को दे दिया। उसने भी उस फल को अपनी प्रेयसी एक वेश्या को स्वयं न खाकर दे दिया। उस वेश्या ने भी उस अपूर्व फल को राजा की प्रसन्नता प्राप्त करने हेतु राजा को लाकर समर्पित कर दिया ।।
राजा ने उस अपूर्व फल को पहचान कर, रानी को दिया हुआ यह फल वेश्या के पास किस प्रकार पहुँचा, इस बात का सूक्ष्मरीत्या अन्वेषण कराकर, रानी के घृणित कृत्य की जानकारी प्राप्त की। प्राप्त ज्ञान से राजा को घोर वैराग्य हुआ और वह राज्य का त्याग कर वन में चला गया ।।
'नीतिशतक' में कवि ने परोपकारिता, वीरता, साहस, उद्योग, उदारता जैसे गुणों को ग्रहण करने के लिए आग्रह किया है, जिनको प्राप्त करने पर समस्त मानवता का कल्याण हो सकता है ।।
कवि दुर्लभ मानव जीवन को सद्गुणों के उपार्जन से सार्थक बनाने के पक्ष में हैं। उनके विचारमें 'जो व्यक्ति मानव शरीर पाकर भी यदि सद्गुणों का संचय नहीं करता, तो वह उस मूर्ख के समान है जो वैदूर्यमणि के बने हुए पात्र में चन्दन की लकड़ी से पकाता है ।।
जो कुछ न जानता हो, उसको सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है। बहुत जानने वाला अर्थात् विशेषज्ञ को तो अनायास प्रसन्न किया जा सकता है। परन्तु ज्ञान के लेशमात्र को पाकर दुर्विदग्ध हुए मनुष्य को ब्रह्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकता, मनुष्य की तो बात ही क्या है ।।
मगर के मुँह के अग्रभाग से रत्न को चाहे मनुष्य निकाल ले और चाहे समुद्र को भी पार कर ले और चाहे क्रोधित सर्प को पुष्पमाला की तरह शिर पर धारण कर ले, परन्तु मूर्ख मनुष्य के चित्त को वह संतुष्ट कभी नहीं कर सकता ।।
जो मनुष्य सरल सूक्तियों से दुष्टों को सन्मार्ग पर लाना चाहता है, मानो वह मनुष्य कोमल तन्तुओं से दुष्ट हाथी को बाँधना चाहता है, शिरीष की नोक से वज्र के समान कठिन मणि को वेधना चाहता है, खारे समुद्र को शहद की बूँद से मीठा करना चाहता है ।।
जो शास्त्रों से भूषित, शब्दों से मनोहर वचनों वाले तथा शिष्यों को देने योग्य विद्यावाले कवि राजा के राज्य में निर्धन होकर रहते हैं तो यह उस राजा की मूर्खता है। विद्वान् तो धन के विना भी राजा ही है।
Nitishatakam Book PDF Demo :
Nitishatakam PDF Book Details :
पुस्तक | नीतिशतकम् - Nitishatakam |
लेखक | डॉ. राजेश्वर शास्त्री |
प्रकाशक | चौखंभा प्रकाशन, वाराणसी |
मुद्रक | मित्तल ऑफसेट प्रिंटर्स, वाराणसी |
प्रकाशन तिथि | 2011 |
पृष्ठ | 138 |
Pdf आकार | 33 MB |
भाषा | हिंदी |
श्रेणी | इंस्पिरेशनल |
फाईल |