Details about कपाल कुंडला Kapalkundala Hindi Book Pdf
Kapalkundala book is written or composed by : Bankim Chandra Chatterjee | This book has total 130 pages | Size of the Pdf file of the Kapalkundala book : 8 MB | Kapalkundala book is published by : Hindi Pracharak Pustakalay, Varanasi | Language of the book Kapalkundala is : Hindi | First edition of this book was published in : 1969 | Pdf quality of this book is : very good | Download link of Kapalkundala Hindi Book is provided below on this page, from where you can download the pdf file of this book by just a single click. Category of the Kapalkundala Hindi book is : Novel
Book Title : Kapalkundala / कपाल कुंडला
Author Name : Bankim Chandra Chatterjee
Publisher : Hindi Pracharak Pustakalay
Tags : Kapalkundala Hindi book Pdf
Category : Novel
Number of pages : 130
File Size : 8 MB
Language : Hindi
First edition : 1969
File type : Pdf
Pdf Quality : Good
Copyright : (CC0 1.0) Public Domain
Material type : Book
Book type : ebook
Download link : available
Source : Public domain
Kapalkundala Book Summary :
उस अमावस्या की घोर अंधेरी रात में दोनों ही जन एक साँससे दौड़ते हुए वनके अन्दर से भागे। वन्यपथ नवकुमार के लिए अंजाना था, केवल सहचारिणी के साथ-साथ उसके पीछे-पीछे जाने के अतिरिक्त दूसरा उपाय न था। किंतु अंधेरी रात में जंगल में हर समय रमणी का पीछा करना कठिन है। कभी रमणी एक तरफ जाती थी, तो नवकुमार दूसरी तरफ।
अन्तमें रमणी ने कहा - मेरा आँचल पकड़ लो। अतः नवकुमार रमणीका आँचल पकड़ कर क्रमशः धीरे-धीरे चले। अंधेरे में कुछ दिखाई न पड़ता था, केवल नक्षत्रलोक में अस्पष्ट बालु का स्तूप का शिखर झलक जाता था और थोड़े से प्रकाश से लक्ष्यका भास होता था। अब तक रात के दो पहर बीत चुके थे।
जंगल के अन्दर अन्धकार में एक देवालय का अस्पष्ट चूड़ा दिखाई पड़ रहा था। उसकी प्राचीर सामने थी। प्राचीर से लगा हुआ एक गृह था। कपालकुण्डला ने प्राचीर द्वार को खटखटाया। उत्तरकारी ने आकर दरवाजा खोला। जिस व्यक्ति ने दरवाजा खोला, वह देवालयकी पुजारिन थी। उसकी उम्र कोई ५० वर्षके लगभग होगी।
कपालकुण्डला ने अपने हाथों द्वारा उस वृद्धा को अपने पास खींचकर कान में अपने साथी के बारे में कुछ कहा। वह पुजारिन बहुत देर तक हथेली पर गाल रखे चिन्ता करती रही। अन्तमें उसने कहा- बात सहज नहीं है। महापुरुष यदि चाहे तो सब कुछ कर सकता है। फिर भी, माता की कृपा से तुम्हारा अमंगल न होगा।