विवेक चूड़ामणि पीडीएफ हिंदी में | Vivek Chudamani PDF Hindi Book

पूरी दुनिया में तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुमको सब कुछ खुद अपने अंदर से सीखना होगा। आत्मा से बेहतर कोई और शिक्षक नही हैं।
- स्वामी विवेकानन्द

Vivek Chudamani PDF Hindi Book


विवेक चूड़ामणि हिंदी पुस्तक पीडीएफ / Vivek Chudamani Hindi Book PDF


ब्रह्मानन्दरसानुभूतिकलितैः पूतैः सुशीतैः सितै- र्युष्मद्वाक्कलशोज्झितैः श्रुतिसुखैर्वाक्यामृतैः सेचय । संतप्तं भवतापदावदहनज्वालाभिरेनं प्रभो धन्यास्ते भवदीक्षणक्षणगतेः पात्रीकृताः स्वीकृताः ॥

हे प्रभो! प्रचण्ड संसार दावानलकी ज्वाला से तपे हुए इस दीन शरणापन्न को आप अपने ब्रह्मानन्द रसानुभव से युक्त परम पुनीत, सुशीतल, निर्मल और वाक्-रूपी स्वर्णकलशसे निकले हुए श्रवणसुखद वचनामृतों से सींचिये अर्थात् इसके ताप को शान्त कीजिये। वे धन्य हैं, जो आपके एक क्षणके करुणामय दृष्टिपथ के पात्र होकर अपना लिये गये हैं।

कथं तरेयं भवसिन्धुमेतं का वा गतिर्मे कतमोऽस्त्युपायः । जाने न किञ्चित्कृपयाव मां भो संसारदुःखक्षतिमातनुष्व ॥

मैं इस संसार-समुद्रको कैसे तरूँगा? मेरी क्या गति होगी? उसका क्या उपाय है?'- यह मैं कुछ नहीं जानता। प्रभो! कृपया मेरी रक्षा कीजिये और मेरे संसार दुःख के क्षयका आयोजन कीजिये।

अज्ञानयोगात्परमात्मनस्तव ह्यनात्मबन्धस्तत एव संसृतिः । तयोर्विवेकोदितबोधवह्नि- रज्ञानकार्य प्रदहेत्समूलम् ॥ ४९ ॥

तुझ परमात्माका अनात्म-बन्धन अज्ञानके कारण ही है और उसीसे तुझको [जन्म मरणरूप] संसार प्राप्त हुआ है। अतः उन आत्मा और अनात्मा के विवेक से उत्पन्न हुआ बोधरूप अग्नि अज्ञान के कार्यरूप संसार को मूलसहित भस्म कर देगा।

वीणाया रूपसौन्दर्य तन्त्रीवादनसौष्ठवम् । प्रजारञ्जनमात्रं तन्न साम्राज्याय कल्पते ॥ वाग्वैखरी शब्दझरी शास्त्रव्याख्यानकौशलम् । वैदुष्यं विदुषां तद्वद्भुक्तये न तु मुक्तये ॥

जिस प्रकार वीणाका रूप लावण्य तथा तन्त्रीको बजाने का सुन्दर ढंग मनुष्यों के मनोरंजनका ही कारण होता है, उससे कुछ साम्राज्यकी प्राप्ति नहीं हो जाती; उसी प्रकार विद्वानों की वाणी की कुशलता, शब्दोंकी धारावाहिकता, शास्त्र- व्याख्यान की कुशलता और विद्वत्ता भोगहीका कारण हो सकती हैं, मोक्षका नहीं।

आप्तोक्तिं खननं तथोपरिशिलाद्युत्कर्षणं स्वीकृतिं निक्षेपः समपेक्षते न हि बहिः शब्दैस्तु निर्गच्छति । तद्वद् ब्रह्मविदोपदेशमननध्यानादिभिर्लभ्यते मायाकार्यतिरोहितं स्वममलं तत्त्वं न दुर्युक्तिभिः ॥

पृथ्वीमें गड़े हुए धनको प्राप्त करनेके लिये जैसे प्रथम किसी विश्वसनीय पुरुषके कथन की और फिर पृथिवी को खोदने, कंकड़- पत्थर आदिको हटाने तथा प्राप्त हुए धनको स्वीकार करने की आवश्यकता होती है- कोरी बातों से वह बाहर नहीं निकलता, उसी प्रकार समस्त मायिक प्रपंचसे शून्य निर्मल आत्मतत्त्व भी ब्रह्मवित् गुरुके उपदेश तथा उसके मनन और निदिध्यासनादिसे ही प्राप्त होता है, थोथी बातों से नहीं।

BookVivek Chudamani Hindi PDF
AuthorGitapress Gorakhpur
LanguageHindi
Pages165
Size4.5 MB
FilePDF
CategoryHindi Books, Hinduism
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