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हिमाचल प्रदेश का प्राचीन तंत्र ग्रंथ सांचा हिंदी पीडीएफ | Himachal Pradesh Ka Prachin Tantra Granth Sancha Hindi Book PDF


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Himachal Pradesh Ka Prachin Tantra Granth Sancha Hindi Book PDF


हिमाचल प्रदेश का प्राचीन तंत्र ग्रंथ सांचा हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Himachal Pradesh Ka Prachin Tantra Granth Sancha Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : हिमाचल प्रदेश का प्राचीन तंत्र ग्रंथ सांचा | इस ग्रन्थ के मूल लेखक या संपादक है : रमेश जसरोटिया एवं डॉ. श्यामा ठाकुर | पुस्तक के प्रकाशक हैं : हिमाचल कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी, शिमला | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 31 MB है | इस पुस्तक में कुल 136 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "हिमाचल प्रदेश का प्राचीन तंत्र ग्रंथ सांचा" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.

Name of the book is : Himachal Pradesh Ka Prachin Tantra Granth Sancha | This Book is originally written or composed by : Ramesh Jasrotiya and Dr Shyama Thakur | This book is published by : Himachal Kala Sanskriti evam Bhasha Akadami, Shimla | PDF file of this book is of size 31 MB approximately. This book has a total of 136 pages. Download link of the book "Himachal Pradesh Ka Prachin Tantra Granth Sancha" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखक
पुस्तक श्रेणीपीडीएफ साइजकुल पृष्ठ
डॉ. श्यामा ठाकुरधर्म, तंत्र मंत्र31 MB136


पुस्तक से : 

'साञ्चा' तन्त्रविद्या का एक अद्भुत ग्रन्थ कहा जा सकता है। यह हिमाचल के पूर्वी क्षेत्र शिमला तथा सोलन मण्डलों में अब भी देखने को मिलता है जिनके पूर्वज इन विद्याओं के विद्वान् रहे है। हिमाचल में इनका विकास कब हुआ यह अभी एक खोज का विषय है। यह तो निश्चित रूपसे कहा जा सकता है कि इन साञ्चों का प्रादुर्भाव पौराणिक युग में हुआ था।
इन साञ्चों में सभी प्रकार के रोगों तथा उनके निवारण का वर्णन देखनेमें आता है। इनमें वर्णित विषयों में जादू-टोना, भूत-प्रेतों की छाया तथा अन्य बाधाओं से छुटकारा तथा सम्मोहन, शत्रुओं का विनाश आदि मन्त्रों का वर्णन है। इनको देखने वाले जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक के लगभग सभी संस्कारों के अवलोकन हेतु इन साञ्चों का प्रयोग करते हैं।
इनका सम्बन्ध तन्त्र विद्या से भी है और ये विद्याएं गुप्तकाल में अपनी चरम सीमा पर थीं अतः यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पांचवीं ईसवी के पश्चात् इनका उद्भव होना आरम्भ हुआ होगा। सारे भारतमें तन्त्रविद्या तथा जीवबलि का बोलबाला हुआ जिसके फलस्वरूप जैन तथा बौद्ध मत का प्रादुर्भाव हुआ।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

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