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सुश्रुत संहिता हिंदी पीडीएफ | Sushruta Samhita (Dr Ambikadutta Shastri) Hindi Book PDF


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सुश्रुत संहिता हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Sushruta Samhita Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : सुश्रुत संहिता | इस ग्रन्थ के मूल लेखक है : महर्षि सुश्रुत | इस पुस्तक के हिंदी अनुवादक है : डॉ. अंबिकादत्त शास्त्री | पुस्तक के प्रकाशक हैं : चौखंबा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 217 MB है | इस पुस्तक में कुल 555 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "सुश्रुत संहिता" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.

Name of the book is : Sushruta Samhita | This Book is originally written by : Maharshi Sushruta | Hindi translator of this book : Dr Ambikadutta Shastri | This book is published by : Chaukhamaba Sanskrit Series Office, Varanasi | PDF file of this book is of size 217 MB approximately. This book has a total of 555 pages. Download link of the book "Sushruta Samhita" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखक
पुस्तक श्रेणीपीडीएफ साइजकुल पृष्ठ
अंबिकादत्त शास्त्रीस्वास्थ्य217 MB555


पुस्तक से : 

वैद्य रोगी के सामने बैठ कर मुचुण्डी से उस फूले हुए अमं को पकड़ कर ऊँचा उठावे अथवा सूई में डोरा पिरो कर उसे अर्म के नीचे डाल कर ऊपर उठावे। प्रमादवश शीघ्रता नहीं करे अन्यथा अर्म के टूटने का भय रहता है। रुग्ण के ऊपर तथा अधोभाग को अच्छी प्रकार दृढ़ता से पकड़ना चाहिये अन्यथा शस्त्रकर्म करते समय शस्त्र चलाने में बाधा होती है।
शस्त्र कर्म के पश्चात् नेत्रों को धोकर ऊपर से रुई रख कर पट्टबन्धन कर देना चाहिये। लगभग २४ घण्टे के बाद पट्टी खोल कर नेत्र को धो के खुला ही छोड़ दे। कुछ दिनों तक नेत्र में लाली रहती है फिर वह धीरे-धीरे कम होती जाती है। नेत्र में चिपचिपा स्त्राव हो तो जिंक सल्फेट के बूंद डालने चाहिये। दोनों क्रियाओं के देखने पर आयुर्वेद और एलोपेथी में विशेष अन्तर प्रतीत नहीं होता है।
इसके अनन्तर सैन्धव लवण, कासीस और पिप्पली के चूर्ण का प्रतिसारण करना चाहिये। रक्तस्रुति के बन्द हो जाने पर वार्म के रोगग्रस्त भाग को शलाका के द्वारा जला देना चाहिये। इतने पर मी व्याधि का कुछ अंश शेष रह जाय तो वहां पर किसी चार का प्रतिसारण करके अवलेखन करे। इसके अतिरिक्त दोषों के निर्हरण के लिये शरीर का ऊर्ध्वं तथा अधः संशोधन करना चाहिये।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


डाउनलोड लिंक :

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