पूस की रात कथा पीडीएफ | Poos Ki Raat Story by Premchand in HINDI PDF Download



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पूस की रात PDF Download Hindi


पूस की रात हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Poos Ki Raat Premchand Book PDF :

पूस की रात पुस्तक के लेखक का नाम मुंशी प्रेमचंद है | इस पुस्तक का प्रकाशन "अज्ञात" द्वारा किया गया है | पूस की रात पुस्तक में कुल पृष्ठों की संख्या 7 हैं तथा इस पुस्तक के पीडीएफ फाईल का आकार लगभग 1 MB है | इस पुस्तक का प्रथम संस्करण वर्ष 1988 में प्रकाशित हुआ था | पूस की रात हिन्दी पुस्तक का मुद्रण जगदंबा प्रेस, प्रयाग द्वारा किया गया है | इस पुस्तक की भाषा हिन्दी है | इस पुस्तक के पीडीएफ फाईल का फ्री डाउनलोड लिंक इसी पोस्ट मे नीचे दिया गया है, जहां से आप इसे मात्र एक क्लिक से डाउनलोड कर सकते है | पूस की रात पुस्तक की श्रेणी है : कहानी, साहित्य

Poos Ki Raat book is written or composed by Munshi Premchand | This book has total 7 pages | Size of the Pdf file of the Poos Ki Raat book is 1 MB | Poos Ki Raat book is published by "unknown" | This book is printed by Jagdamba Press, Prayag | The language of the book Poos Ki Raat is Hindi | First edition of this book was published in the year of 1988 | Poos ki Raat PDF free download button is provided below, from where you can download this file by just a click |  Category of the Poos Ki Raat PDF book is : Story, Literature


पुस्तक का नामपूस की रात
Book NamePoos Ki Raat
भाषा
हिंदी
LanguageHindi
लेखकमुंशी प्रेमचंद
AuthorMunshi Premchand
प्रकाशकज्ञात नही
TagsPoos Ki Raat PDF, Premchand
प्रकाशन तिथि1988
कुल पृष्ठ7
पीडीएफ_साइज1 MB
फाइल टाइपPDF
लिंकGiven Below
श्रेणीसाहित्य, कहानी


Poos Ki Raat Premchand Book PDF Summary :

थोड़ी देर में अलावा जल उठा। उसकी लौ ऊपर वाले वृक्ष की पत्तियों को छूकर भागने लगी। उस अस्थिर प्रकाशमें बगीचे के विशाल वृक्ष ऐसे मालूम होते थें, मानो उस अथाह अंधकार को अपने सिरों पर सँभाले हुए है। अन्धकार के उस अनंत सागर में यह प्रकाश एक नौका के समान हिलता, मचलता हुआ जान पड़ता था।


हल्कू अलाव के सामने बैठा आग ताप रहा था। एक क्षण में उसने दोहर उताकर बगल में दवा ली, दोनों पाँव फैला दिए, मानों ठंड को ललकार रहा हो, तेरे जी में आए सो कर ठंडकी असीम शक्ति पर विजय पाकर वह विजय गर्व को हृदय में छिपा न सकता था।


उसने जबरा से कहा क्यों, अब ठंड नहीं लग रही है ? जब्बर ने कूँ कूँ करके मानो कहा अब क्या ठंड लगती ही रहेगी ? 'पहले से यह उपाय क्यों न सूझी।' जब्बर ने पूँछ हिलायी। अच्छा आओ, इस अलावको कूदकर पार करें। देखें, कौन निकल जाता है। जब्बर ने उस अग्नि राशि की ओर कातर नेत्रोंसे देखा। अगर जल गए, तो मैं दवा न करूँगा।


जबरा जोर से भूँककर खेत की ओर भागने लगा। हल्कू को ऐसा मालूम हुआ कि जानवरोका एक झुण्ड खेत में आया है। शायद नीलगायों का झुण्ड था। उनके कूदने दौड़ने की आवाजें साफ कानमें आ रही थी। फिर ऐसा मालूम हुआ कि खेत में चर रहीं है। उनके चवाने की आवाज चर चर सुनाई देने लगी।




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