पुस्तक : गांधी वध क्यों
लेखक : नाथूराम गोडसे
सम्पादक : गोपाल गोडसे
प्रकाशक : सूर्य भारती प्रकाशन, नई दिल्ली
प्रकाशन तिथि : 2004
कुल पृष्ठों की संख्या : 129
पुस्तक का आकार : 28 MB
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पुस्तक की विषय सूची :
- विभाजन के घाव
- निर्वासित और गांधी जी
- सरदार पटेल और ५५ करोड़
- गांधी वध का पूर्वज्ञान और उदासीन नेतागण
- कश्मीर
- निवेदन पढ़ने से पूर्व
- नथूराम का निवेदन
- आरोपों की चर्चा और नथूराम का पूर्ववृत
- गांधी जी की राजनीति का क्षय दर्शन
- गांधी जी और स्वराज्य
- आदर्शवाद की विफलता
- राष्ट्र विरोधी तुष्टीकरण की परिसीमा
- पाकिस्तान को शेष राशि देने का विषय
- समन्वय के सम्बन्ध में
- सद्भावना
- हिन्दू महासभा के लोकतंत्र विषयक प्रस्ताव
- नथूराम का माडखोलकर को पत्र
सारांश / Summary :
गांधी जी के वध के विषय की परिधि में अभी तक एक आयोग बिठाया गया था। सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति श्री कपूर की नियुक्ति इस कार्य के लिए की गई थी। क्या यह दुर्घटना टाली जा सकती थी और क्या शासकीय कर्मचारियों ने गांधी जी की सुरक्षा की उपेक्षा की? ऐसे बहुत सारे विषय उस आयोग के सामने थे। उस विषय के अन्तर्गत तत्कालीन दिल्ली के वातावरण का चित्रण करना भी उन्हें आवश्यक प्रतीत हुआ। साथ ही, गांधी जी के संबंध में भारत के लोगो का लोकमत कैसा था, यह भी देखना उन्हें जरूरी लगा। कुछ ग्रन्थों के आधार पर और उनके सामने आए कुछ साक्षियों के विवरण से श्री कपूर ने उस विषय की चर्चा की है।
कलकत्ते के नरसंहार का प्रयोग भले ही पूरी तरह फलित न हुआ हो, किन्तु उसका एक परिणाम अवश्य हुआ। उस हत्याकांड के आतंक ने हिन्दुओं को अपना घर को बाध्य कर दिया। नोआखाली और टिप्पेरा के हिन्दुओं के मन में भय उत्पन्न करना, उनकी संपत्ति की लूटपाट करना, स्त्रियों पर अत्याचार करना उनके लिए सुलभ हुआ। यह मार्ग लोगों के स्थानांतरण की दृष्टि से मुस्लिमलीग को अधिक उपयुक्त लगा। बिहार में उस घटना की प्रतिक्रिया हुई, वहाँ के मुसलमानों को सिंध में जाना पड़ा था। २६ नवम्बर, १९४६ को जिन्ना ने 'डॉन' अखबार में प्रकाशित करवाया कि स्थानांतरण का प्रश्न तुरन्त हाथ में लिया जाए। पूरे देश में हिन्दुओं ने इसका विरोध किया, किन्तु मुस्लिम लीग ने उस मार्ग की पुनरावृत्ति की और इस स्थानान्तरण कार्य को सम्पन्न करने की धमकी दी।
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