पुस्तक : देवी भागवत पुराण
लेखक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
सम्पादक : श्री चिम्मनलाल गोस्वामी
प्रकाशक : गोविंद भवन कार्यालय, गिताप्रेस
प्रकाशन तिथि : 1989
कुल पृष्ठों की संख्या : 722
पुस्तक का आकार : 49 MB
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पुस्तक की विषय सूची :
- राजा जनक और शुकदेवजी के प्रश्नोत्तर
- जनक के उपदेश से शुकदेवकी शंका का निराकरण
- चार पुत्र तथा एक कन्या की उत्पत्ति
- कन्या के विवाह और संतान का वर्णन
- शुकदेवजी का गृहत्याग और व्यासजी का विषाद
- सत्यवतीकी उत्पत्ति तथा भगवान् व्यास प्राकट्य कथा
- राजा महाभिष और गंगा को ब्रह्माजी का शाप
- महाभिष की शंतनु के रूपमें उत्पत्ति
- शंतनु के साथ गंगाजी का विवाह
- भीष्म-प्रतिज्ञा तथा सत्यवती के साथ शंतनु का विवाह
- भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम का अन्तर्धान
- पाण्डवो का हिमालय-प्रवेश
- परीक्षित को राज्यप्राप्ति और ब्राह्मणकुमार का शाप
- कीड़े के रूपमें बैठकर तक्षक का पहुँचना
- परीक्षित की मृत्यु
- ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एवं स्वरूप के सम्बन्ध में प्रश्न
- ब्रह्माजी के द्वारा भगवती शक्तिके प्रभाव का वर्णन
- ब्रह्माजीका भगवती के चरणमें समस्त लोकको देखना
- जगदम्बिका के द्वारा अपने स्वरूप का वर्णन
- नारदजी के पूछने पर ब्रह्माजी के द्वारा परमात्मा के स्थूल और सूक्ष्म स्वरूप का वर्णन
पुस्तक के बारे में / about this Book :
यह पुस्तक सुप्रसिद्ध "देवी भागवत पुराण" का संक्षिप्त हिन्दी रूपान्तर है, जो लगभग 29 वर्ष पूर्व सन् 1960 ई० में 'कल्याण' के 34वें वर्ष के विशेषांक के रूप में प्रकाशित हुआ था। उस समय 'कल्याण' के प्रबुद्ध पाठकों और सर्वसाधारण जनों ने "देवी भागवत पुराण पीडीएफ" को अत्यधिक पसंद किया था। उक्त विशेषांक के पुनर्मुद्रण के विषय में जिज्ञासुओं तथा प्रेमी सज्जनों के निरन्तर प्रेमाग्रह को ध्यान में रखते हुए भगवती की अनुकम्पा से सम्पूर्ण श्रीमद्देवी भागवत का यह संक्षिप्त, सरल, हिन्दी अनुवाद किया गया है। इसमें आद्याशक्ति भगवती के स्वरूप-तत्त्व, महत्त्व, महिमा आदि के तात्त्विक विशद विवेचन के साथ देवी को अद्भुत लीला-कथाओं एवं चरित्रों के अतिरिक्त अनेकानेक ज्ञानप्रद, रोचक, पौराणिक आख्यानों तथा प्रेरणाप्रद अन्यान्य चरित्र कथाओं का भी सुरुचिपूर्ण चित्रण है।
सारांश / Summary :
महाराज शंतनु ने देखा, नदी में बहुत थोड़ा जल था। यह देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ। वहाँ उन्हें एक कुमार दिखायी पड़ा, जो गंगा के तटपर खेलने में लगा था। वह बालक विशाल धनुष पर बाण चढ़ाकर उन्हें छोड़ता जा रहा था। उस बालक को देखकर राजा शंतनु बड़े आश्चर्य में पड़ गये। उन्हें किसी भी वास्तविक रहस्य की जानकारी नहीं हो सकी। यह पुत्र मेरा है अथवा नहीं यह बात उनके ध्यान में आया ही नहीं। उस बालक का कार्य महान् अलौकिक था। बाण चलाने में उसके हाथ की बड़ी सफाई थी। उसे देखकर राजा शंतनु आश्चर्यान्वित हो गये। तदनन्तर उन्होंने उससे पूछा- अरे शुद्धाचारी बालक, तुम किसके पुत्र हो ? वह वीर बालक वाणो को चलाने में मस्त था, इससे उसने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। थोड़ी देर बाद वह अन्तर्धान हो गया। अब राजा शंतनु चिन्तासे घबरा उठे।
इस प्रकार कहकर गंगा ने वह बालक राजा शंतनु को सौंप दिया और वे स्वयं अन्तर्धान हो गयीं। राजा का मुखमण्डल प्रसन्नता से खिल उठा। वे असीम सुख का अनुभव करने लगे। उन्होंने पुत्र को गोद में बैठाकर उसका मस्तक चूमा, फिर रथ पर बैठाया और वे अपने नगर को प्रस्थित हो गये। हस्तिनापुर पहुँचने पर महाराज ने बड़े समारोह के साथ उत्सव मनाया। ज्योतिषी पण्डितों को बुलाकर उनसे शुभ दिन पूछा। सम्पूर्ण प्रजा और प्रवीण मन्त्री आमन्त्रित हुए सबकी उपस्थिति में राजा शंतनु ने गंगानंदन भीष्मजी को युवराजपद पर अभिषेक किया। सर्वगुण सम्पन्न पुत्रको राज्य का उत्तराधिकारी बना देनेपर उन धर्मात्मा नरेश को अपार सुख मिला। अब गंगा उनके चित्तसे अलग हो गयीं।
पीडीएफ लिंक / Pdf Link :
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