Image : कुमार संभव पीडीएफ / Kumar Sambhav PDF
Details about कुमार संभव / Kumar Sambhav - Kalidas Hindi Book Pdf
In this vlog we are going to provide you the PDF file of Kumar Sambhav Book. Kumar Sambhav book is originally written by Mahakavi Kalidas. This book has total 96 number of pages. Size of the Pdf file of the Kumar Sambhav book is almost 1 MB. This book is published by Rajpal and Sons publication, Kashmiri Gate Delhi. This book is edited by Shri Viraj ji. The language of the book Kumar Sambhav is Hindi. New edition of this book was published in 2008. Kumar Sambhav hindi book is printed by Rajpal and Sons. Pdf quality of this book is very good. Download link of Kumar Sambhav Hindi Book is provided below on this page, from where you can download the pdf file of this book by just a single click. Category of the Kumar Sambhav Hindi book is : Dharma, Literature
कुमार संभव पुस्तक मूल रूप से महाकवि कालिदास द्वारा लिखी गई है। इस पुस्तक में कुल 96 पृष्ठ हैं। कुमार संभव पुस्तक की पीडीएफ फाइल का आकार लगभग 1 एमबी है। यह पुस्तक राजपाल एंड संस प्रकाशन, कश्मीरी गेट दिल्ली द्वारा प्रकाशित की गई है। इस पुस्तक का संपादन श्री विराज जी ने किया है। कुमार संभव पुस्तक की भाषा हिन्दी है। इस पुस्तक का नया संस्करण 2008 में प्रकाशित हुआ था। कुमार संभव हिंदी पुस्तक राजपाल एंड संस द्वारा मुद्रित है। इस बुक की Pdf क्वालिटी बहुत अच्छी है। कुमार संभव हिंदी पुस्तक का डाउनलोड लिंक इस पेज पर नीचे दिया गया है, जहां से आप इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल को सिर्फ एक क्लिक से डाउनलोड कर सकते हैं। कुमार संभव हिंदी पुस्तक की श्रेणी है: धर्म, साहित्य
Book Title : कुमारसंभव / Kumar Sambhav
Author Name : Mahakavi Kalidas
Publisher : Rajpal and Sons, Delhi
Edited by : Dr Viraj
Printed by : Rajpal and Sons, Delhi
Tags : Kumar Sambhav Pdf
Category : Bhakti-Dharma, Literature
Number of pages : 96
File Size : 1 MB
Language : Hindi
First edition : 2008
File type : Pdf
Pdf Quality : very good
Copyright : Public Domain Dedication
Material type : Book
Book type : ebook
Download link : available
कुमार संभव पुस्तक के अंश :
इसके तीसरे सर्ग में वसन्त का वर्णन किया गया है। यह वर्णन सचमुच ही बहुत सुन्दर है। इतने संक्षेप में इतना भावपूर्ण वर्णन अन्यत्र कहीं भी मिलना दुर्लभ है। पांचवे सर्गमें उन प्राकृतिक परिस्थतियों का वर्णन है, जिनमें पार्वती तप कर रही थी। यहां पर जलती आग, बिजलियों से भरी बरसाती रातें, सर्दियों में कमलों से शून्य सरोवर आदि का वर्णन है।
इस विषय में कहा जाता है कि कालिदास के प्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ ने कुमारसम्भव के आठ सर्गों पर टीका की है। इसके बाद के कवियोकी रचनाओं में कुमारसम्भव के जो भी उदाहरण पाए गए हैं, उनमें से कोई आठवें सर्ग के बाद वाले सर्गों में से नहीं हैं, सभी आठवें सर्ग से पहले के ही हैं। आठवें सर्ग के बादमें श्लोकों की संख्या कम हो गई है।
मूल काव्य में महादेव, पार्वती और कामदेव के लिए हर जगह अलग-अलग नाम प्रयुक्त हुए हैं। महादेव के लिए त्र्यम्बक, त्रिलोचन, स्मरशासन, इन्दुमौलि इत्यादि नामों का प्रयोग हुआ है। परन्तु हिन्दी अनुवादमें हमने केवल दो-एक शब्दों से ही काम चलाने का यत्न किया है, जिससे कि पाठक नामों के भ्रममें न पड़ जाएं। इससे काव्य-सौन्दर्य पर आघात पहुंचा है।